Wo chal padi

अरे देखो, वो फिर चल दी कहीं.......
ताकते झांकते
रास्ते नापते
वो फिर चल दी कहीं..........

चल पड़ी हैं वो फिर से उसी राह पर........
भटकते भटकते
चलते चलते
जहां उसके सपने उसका राह देख रहे हैं,
अरे देखो, वो फिर चल दी कहीं.......

कुछ दिनो से उसके मिजाज लग रहे हैं.....
बदले बदले
खुशनुमा खुशनुमा
जैसे उसने सपने को साकार होते देख लिया हैं..........

किसी ने रोक दिया उसे तो हँस पड़ी वो...........
रोते रोते
विश्वास दिलाकर
बहुत रोक लिया हैं मुझे
अब मैं छू लूँगी उस आसमान
को अपने पंखो से.........
बस उड़ने का मौका मिला हैं उड़ने दे ..........

तेवर उसके हवाओं में बह रहे हैं
वो उफ़ किये बिना चली जा रही हैं.........

सबके सोने के बाद वो जागने लगी हैं
जुगनु के जैसी
वो भी चमकना चाहती हैं जुगनुओं की तरह
इस अंधेरो में.............

ऐसे अन्दाज वाजीब भी नहीं
इस दुनिया के मुताबिक नहीं.........
बुन्ने की कोशिश में हैं वो अपनी दुनिया को
जो टोके उसे इतना सा
वो चल पड़ी हैं आगे ऐसी
महफ़िल से.... 

गुमनाम होकर अकेला रहकर
खुश हो रही हैं वो सपने बुनकर ...........

अपने ही धुन में खुद को ही रंगकर
दुनिया को भी रंगने चली
कल्पित हुई वो स्वयं कल्पना में
अपनी उड़न को एक नया पर देने चली..........


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