कभी बोल के
कभी लिख के
वहां तक पहुचना चाहती हूँ ........
अरमानो के ठेलो से
सपनों के वो रास्तो
पे जाना चाहती हूँ.....
उन सपनो को खुलकर
जीना चाहती हूँ ..........
सुबह उठ कर
सूर्य की रोशनी के
साथ, अपनी भी चमक
देखना चाहती हूँ..........
हर रोज उस चेहरे पे नयी
मुस्कान देखना चाहती हूँ
ज़िसे मेरी मुस्कान की
हमेशा से ज्यादा परवाह रही हैं........
कभी बोल के
कभी लिख के
वहां तक पहुचना चाहती हूँ.......
शाम के काम के बाद
सूर्य की ढ़लती रोशनी के साथ
अपनी ज़िन्दगी को नयी रोशनी
में पिरोना चाहती हूँ........
ज़िन्दगी को जीने के असली
मायेने देना चाहती हूँ...........
अपनी ख्वाइशो को
नए पंख लगाकर
हवाओं में उड़ता
देखना चाहती हूँ..........
आँखें खुली हो य़ा झुकी
हरेक सपनो को हकीकत
देना चाहती हूँ.........
माना की कुछ कमियां
हैं मेरे पास मेरे अंदर
पर इतनी भी नहीं
क्यूंकी मैं उन सपनों को
सच करना जानती हूँ...............
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